विश्व हिन्दू दिवस पर विशेष



लेख :- विनीत सिंह (सोलन) 
विश्व हिन्दू दिवस पर विशेष 10 जनवरी 2024
हमारा भारत देश हजारों वर्षों से ऋषि मुनियों और साहित्यकारों की जन्म भूमि रही है जिस पवित्र भूमि में ऋषि चरक, ऋषि वाल्मीकि, वेदव्यास, कालिदास, सूरदास, कबीरदास रविन्द्र नाथ टैगोर और न जाने कितने साहित्यकार, कवि और लेखक जिन्होंने अपनी लेखनी से वो कर दिखाया जिससे हमारे समाज हमारे महान देश का सर सदा के लिए ऊँचा हो गया और वेद पुराणों का ये देश दुनियाँ में ऋषि और मुनियों का देश माना जाने लगा।
देवनागरी लिपि का हमारी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में हमारे इतिहासिक स्तम्भों पर हमारे प्राचीन ग्रंथों  में अवलोकन किया जा सकता है। 
14 सितंबर 1949 को हमारी प्यारी हिन्दी भाषा को संविधान सभा में राष्ट्रीय भाषा का सम्मान मिला हालांकि ये पारित होने के साथ ही इसे 14 सितंबर को हर वर्ष मनाने का निर्णय लिया गया किन्तु 14 सितंबर 1953 को संविधान सभा में हिंदी भाषा को हिन्दी दिवस के रूप में पहली बार मनाया गया।
सन 2006 में देश के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पहला विश्व हिंदी दिवस मनाया था। तभी से 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस या विश्व हिंदी दिवस मनाया जाने लगा।
आज हमारी हिन्दी भाषा हमारे देश के प्रत्येक सरकारी संस्थानों और शिक्षण संस्थाओं में आवश्यक कर दी है।
किन्तु बहुत ही दुख के साथ कहना पड़ता है कि हमारे सभ्य समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो आज भी गुलाम मानसिकता में जी रहा है और उस भाषा को ही सभ्य भाषा मानता है जो बड़ी - बड़ी महफ़िलों  और संभ्रांत समाज में अपना दबदबा और रौब बनाने के लिए बहुत ही शान से बोली जाती है और हिंदी बोलने वालों को पिछड़ा हुआ मानता है।
वर्तमान हालातों में हम जिस अंतर्राष्ट्रीय भाषा को हमारे देश में भी दूसरी आधिकारिक भाषा के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं वो फिरंगियों की भाषा है। 
हिन्दी भाषा को मन की भाषा भी कहा जाता है जो हम सभी भारतीयों को भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जोड़ती है या यूं कहें कि हम सभी भारतीयों को जो भांत - भांत  के रंग बिरंगे मोतियों के समान हैं उनको एक धागे में पिरोने का काम करती है।
आज हमारे देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूर्ण हो गए हैं और हमारे देश से अमेरीका के शिकागो में स्वामी विवेकानन्द जी ने पहली बार आध्यात्मिक भाषण देकर सारी दुनियां को अचम्भीत कर दिया जो दुनियाँ के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया यदि वो चाहते तो अँग्रेजी में भी भाषण दे सकते थे किंतु स्वामी विवेकानन्द जी तब हमारे देश को और देश वासियों के प्रतिनिधित्व के लिए गये थे। 
पूर्व प्रधान मंत्री  माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी विदेशों में अपनी हिन्दी भाषा का प्रतिनिधित्व किया। 
वर्तमान के माननीय प्रधानमंत्री भी हिंदी भाषा का विदेशों में प्रतिनिधित्व करते हैं।
हिन्दी भाषा में सभी प्रकार के भाव हैं, अपनत्व है, एक ठहराव है। 
आज विदेशों में भी हिंदी भाषा के गीत सुनने, गाने और भाषा सीखने का प्रयास लोग कर रहे हैं। 
हिन्दी भाषा केवल भाषा नहीं अपितु हमारा अभिमान है।


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