शिक्षक दिवस पर विशेष लेख



गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताए।

संत कबीर के इस दोहे में गुरु और शिष्य के संबंधों को बहुत ही सुन्दरता से दर्शाया गया है। 

क्योंकि यदि भगवान और गुरु दोनों ही शिष्य के सामने आकर खड़े हो गए हों तो सबसे पहले गुरु के चरण छूने की बात की है क्योंकि एक गुरु के द्वारा ही ईश्वर को जानने का मार्ग दिखाया है। 

हमारे सम्बन्धों में एक सम्बंध जो कि दुनियाँ के सभी सम्बन्धों से बड़ा है वो गुरु व शिष्य का सम्बंध है,सही मानों में गुरु ही अपने शिष्य का भाग्य विधाता होता है एक सच्चा गुरु ही अपने शिष्य को उसके जीवन का सही मार्ग देता है जिस प्रकार की एक कुम्हार मिट्टी के ढेर को अपनी सधी हुई उँगलियों और हाथों से बहुत सुन्दर आकार दे कर मिट्टी के बर्तन बनाता है, जिस प्रकार एक शिल्पकार अपने हुनर से बहुत ही सुन्दर मूर्तियों को बेजान पत्थरों में जान फूंकता है ठीक उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्यों को इस प्रकार से समाज में रहने के काबिल बनाता है,  जिससे कि वो अपने समाज व राष्ट्र के लिए  कार्य करके उनके लिये उपयोगी सिद्ध हों।

हमारा भारत देश आदरणीय संतों ऋषि- मुनियों और गुरुओं की पवित्र भूमि है यहां पर गुरु का स्थान बाकी सभी संबंधो में बहुत ऊँचा होता है। 

हमारे भारत देश में पवित्र ग्रंथों को भी गुरुओं की उपाधि दी है। 

गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में स्थापित, जो सिख धर्म का परम पवित्र ग्रंथ है, और सभी सिखों का शाश्वत जीवित गुरु है । यह गुरमुखी लिपि में लिखा गया। 

हजारों वर्षों की परम्पराओं और हमारे शिक्षण संस्थानों और शिक्षा की पद्धति में गुरुकुल होते थे जहां पर शिष्यों को उचित शिक्षा और ज्ञान दिया जाता था। 

जहां से हमारी संस्कृति, सामाजिक, नैतिक व न्यायसंगत बाते सीखकर शिष्य अपने माता - पिता भाई - बहन अपने साथियों व अन्य परिवेश के बारे में जानकारियां एकत्रित करते थे

और अपने गुरु जनों व अपने कुल का नाम रोशन करते थे। 

ऐसे गुरुजन जो बिना किसी लालच के अपना सर्वोच्च जीवन शिक्षा व ज्ञान बांटने में लगा देते थे। 

अब ये परंपरा बदल गई है अब इस आधुनिक युग में स्कूल और विश्वविद्यालय बन गए हैं, जहाँ पर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए भेजते हैं।

पुराने समय की बात है एक ऋषि के आश्रम में अरुणि नामक गुरुभक्त शिष्य हुए उनके बारे में प्रचलित था कि एक बार वर्षा के कारण खेत की मेंड़ का जायज़ा लेने ऋषि अपने शिष्यों के साथ गए तो पाया कि मेंड़ को बार - बार मिट्टी डाल कर रोकना पड़ रहा है तो अपने शिष्य अरुणि को इसका दायित्व देकर चले गए कि यदि फिर से वर्षा के कारण मेंड़ टूटती है तो बताना।

वर्षा अधिक थी मेंड़ टूट गई अब अरुणि सोचने लगे कि यदि मैं गुरुजी को इस बारे में बताने जाऊँगा तब तक काफी नुकसान हो जाएगा तो अरुणि ने बहुत कोशिश की किन्तु उस जगह मिट्टी नहीं रुक रही थी।

उधर ऋषि भी अपने कार्य में व्यस्त हो गए और उस बात को भूल गए किन्तु जब रात काफी गहराने लगी तो उनको अरुणि का ख्याल आया तब वो अपने बाकी शिष्यों को लेकर जब उस स्थान पर गए तो देखकर हैरान हो गए कि अरुणि ठंड से कांपते हुए उस स्थान पर लेटा था जहां से खेत की मुंडेर टूटी थी ऐसी हालत देख कर गुरू ऋषि ने अपने उस आज्ञाकारी और गुरुभक्त को सीने से लगा लिया और भविष्य में बहुत ही नाम कमाने का आशीर्वाद भी दिया।

एकलव्य की गुरु भक्ति भी बहुत अच्छी शिक्षा देती है।

हमारे देश में सन 1962 में पहली बार शिक्षक दिवस मनाया गया बालक- बालिकाओं के पूर्ण विकास में हमारे शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान है, हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का षिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान रहा उनके जन्म दिवस को जो हर वर्ष 5 सितंबर को आता है शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है।


विनीत सिंह :- सोलन (हिमाचल प्रदेश)

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